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अलंकार
मानव समाज सौन्दर्योपासक है ,उसकी इसी प्रवृत्ति ने अलंकारों को जन्म दिया है। शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए जिस प्रकार मनुष्य ने भिन्न -भिन्न प्रकार के आभूषण का प्रयोग किया ,उसी प्रकार उसने भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का सृजन किया। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है। जिस प्रकार नारी के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए आभूषण होते है,उसी प्रकार भाषा के सौन्दर्य के उपकरणों को अलंकार कहते है। इसीलिए कहा गया है – ‘भूषण बिना न सोहई -कविता ,बनिता मित्त।’
अलंकार के भेद – इसके तीन भेद होते है –
१.शब्दालंकार २.अर्थालंकार ३.उभयालंकार
१.शब्दालंकार २.अर्थालंकार ३.उभयालंकार
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१.शब्दालंकार :- जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है,वह पर शब्दालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के प्रमुख भेद है – १.अनुप्रास २.यमक ३.शेष
१.अनुप्रास:- अनुप्रास शब्द ‘अनु’ तथा ‘प्रास’ शब्दों के योग से बना है । ‘अनु’ का अर्थ है :- बार- बार तथा ‘प्रास’ का अर्थ है – वर्ण । जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार -बार आवृत्ति होती है ,वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है । इस अलंकार में एक ही वर्ण का बार -बार प्रयोग किया जाता है ।
जैसे –
जैसे –
जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप ।
विश्व
बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप । ।
विश्व
बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप । ।
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२.यमक अलंकार
:- जहाँ एक ही शब्द अधिक बार प्रयुक्त हो ,लेकिन अर्थ हर बार भिन्न हो ,वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण –
:- जहाँ एक ही शब्द अधिक बार प्रयुक्त हो ,लेकिन अर्थ हर बार भिन्न हो ,वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण –
कनक कनक ते सौगुनी ,मादकता
अधिकाय ।
अधिकाय ।
वा खाये बौराय नर ,वा पाये बौराय। ।
यहाँ कनक शब्द की दो बार आवृत्ति हुई है जिसमे एक कनक का अर्थ है – धतूरा और दूसरे का स्वर्ण है।
३.श्लेषअलंकार :- जहाँ पर ऐसे शब्दों का प्रयोग हो ,जिनसे एक से अधिक अर्थ निलकते हो ,वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है । जैसे –
चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर ।
को घटि ये वृष भानुजा ,वे हलधर के बीर। ।
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यहाँ वृषभानुजा के दो अर्थ है – १.वृषभानु की पुत्री राधा २.वृषभ की अनुजा गाय । इसी प्रकार हलधर के भी दो अर्थ है – १.बलराम २.हल को धारण करने वाला बैल
अर्थालंकार
जहाँ अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है ,वहाँ अर्थालंकार होता है । इसके प्रमुख भेद है – १.उपमा २.रूपक ३.उत्प्रेक्षा ४.दृष्टान्त
५.संदेह ६.अतिशयोक्ति
५.संदेह ६.अतिशयोक्ति
१.उपमाअलंकार :- जहाँ दो वस्तुओं में अन्तर रहते हुए भी आकृति एवं गुण की समता दिखाई जाय ,वहाँ उपमा अलंकार होता है । उदाहरण –
सागर –सा गंभीर ह्रदय हो ,
गिरी –सा ऊँचा हो जिसका मन।
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इसमे सागर तथा गिरी उपमान ,मन और ह्रदय उपमेय सा वाचक ,गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।
२.रूपकअलंकार :- जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय ,वहाँ रूपक अलंकार होता है , यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिखाई पड़े । उदाहरण –
बीती विभावरी जाग री।
अम्बर –पनघट में डुबों रही ,तारा –घट उषा नागरी ।’
यहाँ अम्बर में पनघट ,तारा में घट तथा उषा में नागरी का अभेद कथन है।
३.उत्प्रेक्षाअलंकार :- जहाँ उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है। वहा
उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ भिन्नता में अभिन्नता दिखाई जाती है। उदाहरण –
उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ भिन्नता में अभिन्नता दिखाई जाती है। उदाहरण –
सखि सोहत गोपाल के ,उर गुंजन की माल
बाहर
सोहत मनु पिये,दावानल की ज्वाल । ।
बाहर
सोहत मनु पिये,दावानल की ज्वाल । ।
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यहाँ गूंजा की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान के संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है।
४.अतिशयोक्ति अलंकार :- जहाँ पर लोक -सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का वर्णन होता है । वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण –
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि ।
सगरी लंका जल गई ,गये निसाचर भागि। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
५.संदेह अलंकार :- जहाँ प्रस्तुत में अप्रस्तुत का संशयपूर्ण वर्णन हो ,वहाँ संदेह अलंकार होता है। जैसे –
‘सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है ।
कि सारी हीकी नारी है कि नारी हीकी सारी है । ‘
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इस अलंकार में नारी और सारी के विषय में संशय है अतः यहाँ संदेह अलंकार है ।
६.दृष्टान्त अलंकार :- जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्य में बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है ,वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस
अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती -जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है। उदाहरण :-
अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती -जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है। उदाहरण :-
‘एक म्यान में दो तलवारें ,
कभी नही रह सकती है ।
किसी और पर प्रेम नारियाँ,
पति का क्या सह सकती है । । ‘
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इस अलंकार में एक म्यान दो तलवारों का रहना वैसे ही असंभव है जैसा कि एक पति का दो नारियों पर अनुरक्त रहना ।
अतः यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है।
अतः यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है।
उभयालंकार
जहाँ काव्य में शब्द और अर्थ दोनों का चमत्कार एक साथ उत्पन्न होता है ,वहाँ उभयालंकार होता है । उदाहरण – ‘कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।’
इस अलंकार में शब्द और अर्थ दोनों है।
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