Indian History 1 भारतीय इतिहास » भारतीय प्राचीन वैदिक सभ्यता

Indian History 1

वैदिक सभ्यता [Vedic Civilization of
India]

(1)  वैदिक सभ्यता [Vedic Civilization] प्राचीन भारत [Ancient India] की सभ्यता है, जिसमें वेदों की रचना हुई। भारतीय विद्वान तो इस सभ्यता को अनादि परम्परा आया हुआ मानते हैं।
(2)  वैदिक काल का विभाजन दो भागों में किया गया है:-
      अ) ऋग्वेदिक काल: 1500-1000 ई.पू.
      ब) उत्तर वैदिक काल: 1000-600 ई.पू.
(3)  वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इसलिये पड़ा कि वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्त्रोत है। वेद का अर्थ ज्ञान से है, इनमें आर्यो के बसने व आगमन का पता चलता है।  वेद चार है – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद । वेद को भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रन्थ माना जाता है,
जिसके संकलनकत्र्ता “महर्षिकृष्ण द्रैपायन वेदव्यास” को माना जाता है।
(4)  इनमें से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मंत्र (ऊँ [OM] भूर्भुवः [Bhurbhuwah] स्वः [Swah] तत्सवितुर्वरेण्यं [Tatsviturvareniyam] भर्गो [Bhargo] देवस्यः [Devasyah] धीमहि [Dheemahi] धियो [Dhiyo] योनः [Yonah] प्रचोदयात [Prachodayat]) की उल्लेख है।
(5)
ऋग्वैदिक काल
आर्यो के आगमन के बाद तुरंत का काल था, जिसमें कर्मकाण्ड गौण थे। परन्तु उत्तर वैदिक काल में हिन्दु में कर्मकाण्डों की प्रमुखता बढ़ गई।

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ऋग्वैदिक काल [Rigvedic Period]:

(1)  इस काल की तिथि निर्धारण जितनी विवादास्पद रही है, उतनी ही इस काल के लोगों के बारे में सटिक जानकारी। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि इस सभ्यता तक केवल इसी ग्रन्थ (ऋग्वेद) की रचना हुई थी।
(2)  मैक्समुलर के अनुसार – आर्य का मूल निवास स्थान “मध्य एशिया को माना जाता है।
(3)  आर्य सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्तान  में बसे। ये क्षेत्र प्रमुख सात (07) नदियों :- सिंध, कुम्भा
(काबुल), शतुद्री (सतलज), विपासा
(व्यास), परूष्णी (रावी), असिकमी
(चिनाब), वितस्ता (झेलम), तक फैला हुआ था। इनके क्षेत्राधिकार को “सप्त सैंधव प्रदेश” कहा जाता है
(4)  आर्य काबीला बनाकर रहते थे, जिनमें परिवार को (गृह) कुल कहा जाता था,
जिसकी मुखिया कुलप कहलाता था। ये सभी कुल मिलकर एक ग्राम बनाते थे जिसका मुखिया ग्रामणी कहलाता था। इसी प्रकार सभी ग्राम मिलकर विश बनाते थे, जिसमें विश का प्रमुख विशपति होता था एवं सभी विश मिलकर एक जन बनाते थे।
➥ कुल (कुलप) ➥ ग्राम (ग्रामणी) ➥ विश (विशपति) ➥ जन (राजन)
(5)  ऋग्वैदिक काल में देवताओं में सर्वाधिक महत्व ‘इन्द्र‘
को तथा उसके उपरान्त ‘अग्नि‘ व
‘वरूण‘ को महत्व प्रदान किया गया था।
(6)  ऋग्वेद में इन्द्र को ‘पुरन्दर‘ अर्थात् “किलेकोतोड़ने” वाला कहा गया है,
ऋग्वेद में उसके लिये
250 सुक्त है तथा अग्नि के लिये
200 सुक्त है।
(7)  मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले देवता के रूप में अग्नि की पुजा की जाती थी।
(8)
ऋग्वेद में उल्लेखित सभी नदियों में ‘सरस्वती
सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती है। ऋग्वेद में “गंगा” का एक बार और “यमुना” का उल्लेख तीन बार हुआ है, इसमें
सिन्धुनदी” का उल्लेख सर्वाधिक बाद हुआ है।

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उत्तरवैदिक काल [Uttar Vedic Period] :

(1)  उत्तर वैदिक काल
का इतिहास ऋग्वेद के पश्चात् आर्य सभ्यता “पंजाब सेकुरूक्षेत्र” अर्थात् “गंगायमुनादोआब” क्षेत्र में फैला हुआ है,
इस क्षेत्र को “आर्यावर्त” कहा जाता था।
(2)  इस काल की राजनीतिक दशा के अंतर्गत आर्यो का सम्पूर्ण उत्तर भारत में प्रसार हुआ,
सभी छोटे-छोटे कबीले एक-दूसरे से मिलकर क्षेत्रानुसार जनपद बने एवं भरत और पुरू मिलकर कुरू बने।
(3)  उत्तर वैदिक काल  में सभा व समिति के सभाओं का समावेश राजा की शक्ति अर्थात् राजा का पद वंशानुगत हो गया। समिति की तुलना में सभाओं को अधिक प्रभावी होने लगी एवं राजाओं के वरिष्ठ अधिकारी समूह को “रत्निन” या “राजकतृ” कहा जाता था।
(4)  समाज चार वर्णो में विभाजन हो गया:- ब्राम्हण,
क्षत्रिय, वैश्यों एवं शूद्रों में ।
(5)  जीवन काल चार आश्रमों में अर्थात् आश्रम व्यवस्था में बांटा गया (अधिकतम 100
वर्षानुसार):
ब्रम्हचर्य (25
वर्ष की आयु), गृहस्थ (25
से 50 वर्ष तक), वानप्रस्थ (50 से 75 वर्ष ) एवं सन्यास आश्रम (75 से 100 वर्ष )
(6)  यह काल कृषि प्रधान होकर, गेहूं मुख्य फसल व चावल का उपयोग करने लगा।
(7)  मिट्टी के विशेष प्रकार का बर्तन बनाये गये जिसे
चित्रित धूसर
मृद भाण्ड (
PGW : Painted Grey Ware)” कहा गया।
(8)  उत्तरवैदिक काल में लोहे का प्रयोग आर्यो द्वारा किया गया जिन्हें प्रारंभ में अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण हेतु एवं समयान्तर कृषि उपकरणों के रूप में प्रयोग किया जाने लगा,
जिसे “कृष्ण अयस” या “श्याम” कहा जाता था। कौशाम्बी नगर में प्रथम बार पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था।
(9)
गोत्र नामक
संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ। जहाँ गोत्रीय विवाह प्रतिबंधित हुआ। स्त्रियों की दशा में परिवर्तन अर्थात् धार्मिक
कर्मकाण्डों से बेदखल किया गया व जाति प्रथा लागू हो गया।

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वैदिक साहित्य [Vedic Literature]:

वैदिक काल में वेद साहित्य का प्रचलन हुआ, वेदों को
अपौरूषेय” कहा गया। जिसके अंतर्गत वेदों को चार (04)
भागों में विभाजित किया गया –

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[01] ऋग्वेद [Rigveda]:

✔  वेद का अर्थ – “ज्ञान” से हे,
इसमें आर्यो के आगमन व बसने का पता चलता है।
✔  इसमें 10 मण्डल,
1028 श्लोक, लगभग 10,600 मन्त्र है।
✔  इसमें “गायत्रीमंत्र (Gayatri Mantra)” का उल्लेख मिलता है जो सावित्री नामक देवता को संबोधित है।

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[02] यजुर्वेद [Yajurveda]:

✔  यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान ग्रन्थ है, इसके पाठकर्ता ब्राम्हणों को ‘अध्वर्यु‘ कहते है।
✔  यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है। यजुर्वेद [Yajurveda] दो भागों में विभक्त किया गया है
     ➥  गद्य (कृष्ण यजुर्वेद)
     ➥  पद्य (शुक्ल यजुर्वेद)

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[03] सामवेद [Samveda]:

✔  साम वेद का अर्थः ‘‘गान‘‘ से है,
इसकी रचनाओं के गायनकत्र्ता ब्राम्हणों को “उद्गातृ” कहते है।
✔  इसमें कुल 1549
रचनाओं का समावेश है।
✔  वेदों में सामवेद को ‘‘भारतीय संगीत काजनक‘‘ माना जाता है।

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[04] अथर्ववेद [Atharva Veda]:

✔  “अथर्व
शब्द का तात्पर्य है- पवित्र, जादू। अथर्ववेद में रोग निवारण, राजभक्ति, विवाह, प्रणय,
गीत, अधंविश्वास आदि का वर्णन है। इस वेद की रचना “अथर्वाऋषि” ने किया था।
✔  अथर्ववेद कन्याओं के जन्म की निन्दा करता है।
नोटः सबसे प्राचीन वेद
‘ऋग्वेद [Rig vedas]‘ एवं सबसे बाद का वेद ‘अथर्ववेद [Atharva
Vedas]‘ है।

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उपवेद [Upaveda]:

वैदिक साहित्य के अंतर्गत 04 चारों वेदों के उपवेदों के नाम एवं उनके संबंधित क्षेत्र रचनाकारों के नाम सहित निम्नानुसार है:-
★  ऋग्वेद – आयुर्वेद (चिकित्साशास्त्र सेसंबंधित) – धनवन्तरि (रचनाकार)
★  यजुर्वेद – धनुर्वेद (युद्ध कलासेसंबंधित) – विश्वामित्र
★  सामवेद – गांधर्ववेद (कलाएवंसंगीत सेसंबंधित) – भरतमुनि
★  अथर्ववेद – शिल्पवेद (भवन निर्माण कलासेसंबंधित) – विश्वकर्मा

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ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ [Modern of Indian Rivers Name
and Rigvedic Name]
:


प्राचीन नाम (Rigvedic Name)

आधुनिक नाम (Modern Name)

कुगु – कुर्रम

सुवास्तु – स्वात्

कुमा – काबुल
●  गोमती – गोमल
नोटः  ऊपर चारों ही नदियाँ
“अफगानिस्तान”
की है।

वितस्ता – झेलम

परूषणो – रावी

विपाशा – व्यास
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दुषद्धति – घग्घर

अस्किनी – चिनाव

शतुद्रि – सतलज
●  सदानीरा – गण्डक